भौगोलिक संकेत क्या है?
· भौगोलिक संकेत बौद्धिक संपदा की एक शैली है।
· यह एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति वाले उत्पादों और इसके विशेष गुणवत्ता या प्रतिष्ठा विशेषताओं के संबंध में सदियों से उत्क्रांति का प्रतीक है।
· उत्पादों की स्थिति इसकी प्रामाणिकता को दर्शाती है और सुनिश्चित करती है कि पंजीकृत अधिकृत उपयोगकर्ताओं को लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति है।
उदाहरण: कांचीपुरम सिल्क साड़ी, अल्फांसो आम, नागपुर नारंगी, कोल्हापुरी चपल, बीकानेरी भुजिया, आगरा पाथा |
· इससे बाहरी लोग शीर्षक / लेबल “दार्जिलिंग” के साथ अन्य प्रकार की चाय नहीं बेच सकते हैं, अन्यथा उन्हें दंडित किया जा सकता है।
वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और सुरक्षा) अधिनियम,1999 में भौगोलिक संकेत का अर्थ है एक ऐसा संकेत, जो वस्तुओं की पहचान, जैसे कृषि उत्पाद, प्राकृतिक वस्तुएं या विनिर्मित वस्तुएं, एक देश के राज्य क्षेत्र में उत्पन्न होने के आधार पर करता है, जहां उक्त वस्तुओं की दी गई गुणवत्ता, प्रतिष्ठा या अन्य कोई विशेषताएं इसके भौगोलिक उद्भव में अनिवार्यत योगदान देती हैंl
भौगोलिक संकेत के प्रकार:
भौगोलिक संकेत दो प्रकार के होते हैं –
(i) पहले प्रकार में वे भौगोलिक नाम हैं जो उत्पाद के उद्भव के स्थान का नाम बताते हैं जैसे शैम्पेन, दार्जीलिंग आदि।
(ii) दूसरे हैं गैर-भौगोलिक पारम्परिक नाम, जो यह बताते हैं कि एक उत्पाद किसी एक क्षेत्र विशेष से संबद्ध है जैसे अल्फांसो, बासमती आदि।
भौगोलिक संकेत – कुछ महत्वपूर्ण तथ्य:
· Rosogolla – पश्चिम बंगाल (नवंबर 2017 में)
· Etikoppaka toys – आंध्र प्रदेश (नवंबर 2017 में)
· Banganapalle Mango बंगानपॉल आम– आंध्र प्रदेश
· Gobindobhog rice गोविंदोबघ चावल– पश्चिम बंगाल (अगस्त 2017 में)
· Nilambur teak नीलमबुर सागौन– केरल (फरवरी 2017 में) [सबसे पहले अंग्रेजों द्वारा मान्यता प्राप्त; मक्का का टीक माना जाता है]
· भौगोलिक संकेत जो केरल से पैदा होते है – Pokkali rice, Vazhakulam Pineapple, Chengalikodan Banana. पोक्काली चावल, वाजाकुलम अनानास, चेनलगोडन केला.
· दार्जिलिंग चाय भारत में भौगोलिक संकेत के साथ प्रदान किए गए पहला उत्पाद था।
भौगोलिक संकेत से संबंधी कानूनी अधिकार:
· यह औद्योगिक संपत्ति के संरक्षण के लिए पेरिस कन्वेंशन के तहत बौद्धिक संपदा अधिकारों (आईपीआर) के एक तत्व के रूप में शामिल किया गया है।
· अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, भौगोलिक संकेत (जीआई) विश्व व्यापार संगठन के समझौते व्यापार से संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकारों (ट्रिप्स) द्वारा नियंत्रित है।
· भारत स्तर पर, वस्तुओं के भौगोलिक संकेत (पंजीकरण और सुरक्षा) अधिनियम,1999 भारत में भौगोलिक संकेतों को अधिशासित करता है।
· इस अधिनियम के अंतर्गत वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, औद्योगिक नीति एवं प्रवर्तन विभाग के अंतर्गत महानियंत्रक, पेटेंट, डिज़ाइन तथा ट्रेड मार्ग, ”भौगोलिक संकेतों के पंजीयक” हैं।
· महानियंत्रक, पेटेंट, डिज़ाइन और ट्रेड मार्ग भौगोलिक संकेत रजिस्ट्री (जीआईआर) की कार्यशैली का निर्देशन और पर्यवेक्षण करता है।
भौगोलिक संकेत कैसे सुरक्षित हैं?
एक भौगोलिक संकेत की रक्षा करने के तीन प्रमुख तरीके हैं:
· सुई जनरिस सिस्टम (सुरक्षा के विशेष शासन)
· सामूहिक या प्रमाणीकरण के निशान का उपयोग करना
· व्यावसायिक प्रथाओं पर ध्यान केंद्रित तकनीकों, जिसमें प्रशासनिक उत्पाद अनुमोदन योजनाएं शामिल हैंl
भौगोलिक संकेत अधिनियम के साथ समस्याएं / मुद्दे?
· भारत में विशाल सामाजिक, सांस्कृतिक, जातीय, खाद्य विविधताएं हैं इसलिए, हजारों उत्पाद जो भौगोलिक संकेत के लिए योग्य होंगे।
· लेकिन ऐसे उत्पादों के उत्पादन में लगे ज्यादातर लोग छोटे परिवार या छोटी इकाइयों से जुड़े है।
· इसलिए उन्हें संघों में संगठित करना अक्सर काफी मुश्किल होता है।
कुछ वस्तुएं अधिनियम के तहत पंजीकरण योग्य नहीं हैं :
· जब भौगोलिक संकेत एक जेनरिक (वंश) नाम बन जाता है, उन वस्तुओं के नाम, जिन्होंने अपने मूल अर्थ खो दिए हैं और अब उनके सामान्य नाम उपयोग में लाए जाते हैं।
· यदि भौगोलिक संकेत के उपयोग से जनता को धोखा देने, भ्रम पैदा करने अथवा किसी प्रभावी कानून के खिलाफ है।
· ऐसे भौगोलिक संकेत, जिनमें विवादास्पद अथवा अश्लील सामग्री है या समाज के किसी वर्ग को चोट पहुंचे, आदि
भौगोलिक संकेत के लाभ:
· भारत का विकास इंजन के रूप में भौगोलिक संकेत को देखा जाता हैं: जो रोजगार सृजन, भारत में पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देना, ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना, नवाचार को बढ़ाने, रचनात्मकता, अनुसंधान एवं विकास, “मेक इन इंडिया” का भौतिकीकरण।
· भौगोलिक संकेत से निर्यात बाजार को बढ़ावा मिलेगा जिससे भारत में विदेशी मुद्रा का प्रवाह बढ़ेगा।
· उत्पादों के लिए कानूनी संरक्षण
· उपभोक्ताओं को वांछित गुणों की गुणवत्ता के उत्पाद प्राप्त करने में मदद करता है।
· दूसरों के द्वारा भौगोलिक संकेत के अनधिकृत इस्तेमाल को रोकता है।
· राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी मांग को बढ़ाकर जीआई टैग वस्तुओं के उत्पादकों की आर्थिक समृद्धि को बढ़ावा देता है।
· भौगोलिक संकेत वस्तुओं के उत्पादकों को उनके उत्पादों के लिए प्रीमियम का दावा करने की अनुमति देता है। इस प्रकार, यह उनके लिए आर्थिक रूप से फायदेमंद है।
आगे की राह:
· भौगोलिक संकेत को पूरी तरह से ऐतिहासिक और अनुभवजन्य जांच के बाद आवंटित किया जाना चाहिए।
· जिन उत्पादों की उत्पत्ति का पता लगाया नहीं जा सकता है, उन्हे भौगोलिक संकेत के साथ कोई भी क्षेत्र प्रदान नहीं किया जाना चाहिए या फिर दोनों राज्यों को स्वामित्व दिया जाना चाहिए।
· राज्यों और समुदाय के फोकस को केवल क्षेत्र में प्रमाणन से हटा कर, इसके बजाय सभी संसाधनों के उत्पाद को बढ़ावा देने की जरूरत है और जिससे इससे संबंधित उद्योगों को भी बढ़ावा मिल सके।
निष्कर्ष:
भारत में विविध प्रकार के उत्पादों का उत्पादन करने की क्षमता तो है ही साथ साथ एक समृद्ध सांस्कृतिक और भौगोलिक विविधता भी है। इसका उद्देश्य भौगोलिक संकेत के तहत कवर किए गए उत्पादों के उस दायरे को बढ़ाने के लिए करना चाहिए, जिससे इसमें से अधिकतम लाभ मिल सके।
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